प्रतिदिन तुलसी का सेवन करने से अनेक चंद्रायण व्रतों के समान पवित्रता मिलती है। जल में तुलसीपत्र डालकर स्नान करने से तीर्थ स्नान का फल प्राप्त होता है। ऐसा व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों में सम्मानपूर्वक बैठने का अधिकारी माना जाता है।
वेदों के अनुसार धार्मिक कार्यों में तीन बार आचमन करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इससे शारीरिक, मानसिक और वाचिक पापों से मुक्ति मिलती है। तीन आचमन के फलस्वरूप अदृश्य रूप से असीमित पुण्य लाभ मिलता है।
अथर्ववेद में शंख को अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिर्मंडल और सुवर्ण से जुड़ा बताया गया है। शंखनाद शत्रुओं का मनोबल तोड़ता है। पूजा के समय शंख बजाने से पाप नष्ट होते हैं और देह छोड़ने के बाद साधक श्रीहरि के निकट माना जाता है। इसलिए हर धार्मिक अनुष्ठान में शंखनाद को ज़रुरी माना गया है।
मानव शरीर की उपमा मिट्टी के कलश से दी गई है। जिस तरह जल के बिना कलश अशुभ माना जाता है, उसी तरह प्राण के बिना शरीर भी अर्थहीन होता है। इसी कारण पूजा के कलश में जल, दूध या अनाज भरने की परंपरा है, जिससे वह कल्याणकारी माना जाता है।
धर्मशास्त्रों में कलश को सुख, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार भगवती की पूजा-अर्चना में सबसे पहले कलश स्थापना होता है। कलश के मुख में विष्णु, कंठ में रुद्र, मूल में ब्रह्मा और मध्य में मातृशक्तियों का वास माना जाता है।
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं। मंत्र उच्चारण से उत्पन्न शब्द-शक्ति, संकल्प और श्रद्धा के बल पर दोगुनी होकर ईश्वरीय चेतना से जुड़ती है। तब आंतरिक व बाह्य जगत में एक विशेष ऊर्जा प्रवाहित होती है, जो साधक को सिद्धियां और मानसिक शांति प्रदान करती है।
सूर्य सभी ग्रहों के अधिपति हैं। उन्हें प्रसन्न रखने के लिए प्रतिदिन जल अर्पित करना शुभ माना गया है। इससे सूर्य समेत अन्य ग्रह भी अनुकूल रहते हैं, जिससे व्यक्ति को सुख, शांति और सफलता प्राप्त होती है।
सूर्यदेव को जल चढ़ाने पर धार के बीच से आने वाली किरणें आँखों की रोशनी बढ़ाती हैं। इन किरणों में मौजूद रंग शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी माने गए हैं। यह प्राचीन पद्धति आँखों सहित पूरे शरीर को स्फूर्ति और शक्ति देने में मददगार बताई गई है।
मधुर, तीखा, कटु, कषाय, अम्ल और लवण यह छः प्रकार के स्वाद या रस होते है और इन छः रसों के मेल से अधिक से अधिक 56 प्रकार के खाने योग्य भोजन को तैयार किया जा सकता है, इसलिए भगवान को 56 प्रकार का भोग लगाया जाता है।
शनिदेव का पूजन व्यक्ति के जीवन में हर प्रकार से बुरे प्रभाव को कम करता है और इनके पूजन से जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है।