गौ-माता से संबंधित रोचक तथ्य(53)

रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के मुताबिक, गाय के दूध में रेडियोधर्मिता से बचाने की सबसे ज़्यादा क्षमता पाई जाती है। वहीं, जिन घरों में गाय के गोबर से लीपाई-पोताई होती है, वे भी रेडियोधर्मिता के प्रभाव से काफ़ी हद तक सुरक्षित रहते हैं। शायद यही कारण था कि पुराने ज़माने में दीवारों और फर्शों पर गोबर से लिपाई करने की परंपरा थी—यह न सिर्फ़ पर्यावरण-अनुकूल थी, बल्कि स्वास्थ्य के नज़रिए से भी फ़ायदेमंद थी।

रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के मुताबिक, गाय के दूध में रेडियोधर्मिता से बचाने की सबसे ज़्यादा क्षमता पाई जाती है। वहीं, जिन घरों में गाय के गोबर से लीपाई-पोताई होती है, वे भी रेडियोधर्मिता के प्रभाव से काफ़ी हद तक सुरक्षित रहते हैं। शायद यही कारण था कि पुराने ज़माने में दीवारों और फर्शों पर गोबर से लिपाई करने की परंपरा थी—यह न सिर्फ़ पर्यावरण-अनुकूल थी, बल्कि स्वास्थ्य के नज़रिए से भी फ़ायदेमंद थी।

पूज्य देवराहा बाबा के कथनानुसार, जब तक गौ माता का रक्त इस धरती पर बहता रहेगा, तब तक कोई भी धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो सकता। स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण जी ने भी ज़ोर देकर कहा था कि हमारे लिए गोहत्या बंदी बहुत ज़रुरी है। आज विज्ञान भी गाय के अनमोल गुणों और उसके वैज्ञानिक महत्त्व को स्वीकार कर रहा है—कई शोधों के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं।

पूज्य देवराहा बाबा के कथनानुसार, जब तक गौ माता का रक्त इस धरती पर बहता रहेगा, तब तक कोई भी धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो सकता। स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण जी ने भी ज़ोर देकर कहा था कि हमारे लिए गोहत्या बंदी बहुत ज़रुरी है। आज विज्ञान भी गाय के अनमोल गुणों और उसके वैज्ञानिक महत्त्व को स्वीकार कर रहा है—कई शोधों के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं।

महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में कामधेनु उनकी सभी ज़रुरतें पूरी करती थी। इसी कामधेनु को पाने के लिए विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ जी पर नारायणास्त्र, ब्रह्मास्त्र और पाशुपतास्त्र तक चला दिए, लेकिन कामधेनु की कृपा से ये सारे अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए।

महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में कामधेनु उनकी सभी ज़रुरतें पूरी करती थी। इसी कामधेनु को पाने के लिए विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ जी पर नारायणास्त्र, ब्रह्मास्त्र और पाशुपतास्त्र तक चला दिए, लेकिन कामधेनु की कृपा से ये सारे अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए।

भगवान शिव का वाहन नंदी दक्षिण भारत की ओंगलें नस्ल का बताया जाता है, जबकि जैन धर्म के आदितीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का चिन्ह भी बैल था। भारतीय गौवंश के मूत्र और गोबर से बनी लगभग 32 औषधियों को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की सरकारों से मान्यता मिली हुई है।

भगवान शिव का वाहन नंदी दक्षिण भारत की ओंगलें नस्ल का बताया जाता है, जबकि जैन धर्म के आदितीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का चिन्ह भी बैल था। भारतीय गौवंश के मूत्र और गोबर से बनी लगभग 32 औषधियों को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की सरकारों से मान्यता मिली हुई है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, गौ माता के गोबर से ही भगवान शिव के प्रिय बिल्वपत्र की उत्पत्ति हुई। पुराने समय में चौपाल में पीपल, आंगन में तुलसी और घर में गाय रखने का चलन था। माना जाता है कि गौ माता और उसके बछड़ों के रंभाने से मनुष्य की कई मानसिक परेशानियाँ अपने आप ही दूर हो जाती हैं। वहीं, गाय का दूध हृदय रोग से भी बचाव में सहायक माना गया है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, गौ माता के गोबर से ही भगवान शिव के प्रिय बिल्वपत्र की उत्पत्ति हुई। पुराने समय में चौपाल में पीपल, आंगन में तुलसी और घर में गाय रखने का चलन था। माना जाता है कि गौ माता और उसके बछड़ों के रंभाने से मनुष्य की कई मानसिक परेशानियाँ अपने आप ही दूर हो जाती हैं। वहीं, गाय का दूध हृदय रोग से भी बचाव में सहायक माना गया है।

गाय के घी को नाक में डालने से बाल झड़ना कम होता है, नए बाल आने लगते हैं, और साथ ही मानसिक शांति भी मिलती है। कहा जाता है कि इससे याददाश्त भी तेज़ होती है। देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की क्षमता होने की बात कही गई है—विशेष रूप से स्तन तथा आंत के कैंसर में इसका उपयोग मददगार सिद्ध हो सकता है।

गाय के घी को नाक में डालने से बाल झड़ना कम होता है, नए बाल आने लगते हैं, और साथ ही मानसिक शांति भी मिलती है। कहा जाता है कि इससे याददाश्त भी तेज़ होती है। देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की क्षमता होने की बात कही गई है—विशेष रूप से स्तन तथा आंत के कैंसर में इसका उपयोग मददगार सिद्ध हो सकता है।

भगवान राम के पूर्वज महाराज दिलीप नंदिनी गाय की पूजा करते थे, जिससे उन्हें और उनके वंश को अपार उन्नति मिली। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य-योनी अन्य सभी योनियों से श्रेष्ठ है, क्योंकि वह गौमाता की निर्मल छाया में रहकर अपने जीवन को धन्य कर सकता है।

भगवान राम के पूर्वज महाराज दिलीप नंदिनी गाय की पूजा करते थे, जिससे उन्हें और उनके वंश को अपार उन्नति मिली। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य-योनी अन्य सभी योनियों से श्रेष्ठ है, क्योंकि वह गौमाता की निर्मल छाया में रहकर अपने जीवन को धन्य कर सकता है।

मान्यता है कि घी से हवन करने पर लगभग एक टन ताज़ी ऑक्सीजन उत्पन्न होती है। इसी वजह से मंदिरों में घी के दीपक और यज्ञ का प्रचलन है, जो वातावरण को शुद्ध रखने में सहायक है।

मान्यता है कि घी से हवन करने पर लगभग एक टन ताज़ी ऑक्सीजन उत्पन्न होती है। इसी वजह से मंदिरों में घी के दीपक और यज्ञ का प्रचलन है, जो वातावरण को शुद्ध रखने में सहायक है।

प्राचीनकाल में घरों की दीवारें और ज़मीन गाय के गोबर से लीपी-पोती जाती थीं। यह न सिर्फ़ दीवारों को मज़बूत करता था, बल्कि परजीवियों, मच्छरों और कीटाणुओं को भी दूर रखता था। चर्म रोगों में इसके लाभ सर्वविदित हैं, और यह हमारे पूर्वजों के गहरे समझदारी भरे जीवनशैली का प्रमाण है।

प्राचीनकाल में घरों की दीवारें और ज़मीन गाय के गोबर से लीपी-पोती जाती थीं। यह न सिर्फ़ दीवारों को मज़बूत करता था, बल्कि परजीवियों, मच्छरों और कीटाणुओं को भी दूर रखता था। चर्म रोगों में इसके लाभ सर्वविदित हैं, और यह हमारे पूर्वजों के गहरे समझदारी भरे जीवनशैली का प्रमाण है।

पारंपरिक रूप से माना जाता रहा है कि भारतीय गाय का गोबर खेती के लिए अमृत समान है। इसी अमृत तुल्य गोबर की बदौलत हमारी धरती सदियों से अनाज और धन-धान्य उगलती आ रही है। यह प्राचीन सत्य आज भी ऑर्गेनिक खेती और स्वच्छ पर्यावरण के संदर्भ में उतना ही प्रासंगिक है, जितना पहले था।

पारंपरिक रूप से माना जाता रहा है कि भारतीय गाय का गोबर खेती के लिए अमृत समान है। इसी अमृत तुल्य गोबर की बदौलत हमारी धरती सदियों से अनाज और धन-धान्य उगलती आ रही है। यह प्राचीन सत्य आज भी ऑर्गेनिक खेती और स्वच्छ पर्यावरण के संदर्भ में उतना ही प्रासंगिक है, जितना पहले था।

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