भगवान से संबंधित रोचक तथ्य(27)

हनुमान जी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था, जिसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक विलक्षण जाति माना गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व भारत में यह जाति अस्तित्व में थी, लेकिन 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व यह धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी। वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को केवल एक बलशाली योद्धा ही नहीं, बल्कि एक विशिष्ट पंडित, राजनीति के ज्ञाता और वीरता में अद्वितीय बताया गया है। कुछ शोध यह भी संकेत देते हैं कि उस समय एक मानव जाति थी, जो मुख और पूँछ से वानर के समान दिखती थी, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और शक्ति किसी भी सामान्य मानव से कहीं अधिक थी।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति को घर के दक्षिण-पश्चिमी कोने में रखने से कई वास्तु दोष स्वतः दूर हो जाते हैं। यह दिशा स्थिरता और सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है, और जब इस स्थान पर हनुमान जी की उपस्थिति होती है, तो घर नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त रहता है। माना जाता है कि इससे घर में सकारात्मकता और शांति बनी रहती है, तथा किसी भी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं।

पंचमुखी हनुमान जी की उपासना तंत्र शास्त्रों में अत्यधिक प्रभावशाली मानी गई है। तंत्र परंपरा में पंचमुखी हनुमान सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक हैं। कहा जाता है कि उनका यह स्वरूप हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है और भक्तों की रक्षा करता है। पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या तस्वीर को बहुत शुभ माना जाता है और इसे घर में स्थापित करने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

हनुमान जी ब्रह्मचारी थे, लेकिन फिर भी उनका एक पुत्र था—मकरध्वज। इसका जन्म एक अद्भुत घटना के कारण हुआ था। जब हनुमान जी ने लंका दहन के बाद अपनी जलती हुई पूँछ को ठंडा करने के लिए समुद्र में डुबकी लगाई, तो उनके पसीने की एक बूँद समुद्र में गिर गई। संयोग से, एक मछली ने उस बूँद को निगल लिया और उसके गर्भ से मकरध्वज का जन्म हुआ।

बहुत कम लोग जानते हैं कि हनुमान जी के पाँच सगे भाई भी थे और वे सभी विवाहित थे। इसका उल्लेख ब्रह्मांड पुराण में मिलता है, जहाँ बताया गया है कि वानरराज केसरी के कुल छह पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े हनुमान जी थे। उनके अन्य भाइयों के नाम क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान थे। इन सभी भाइयों की संतान भी थी, जिससे उनका वंश कई वर्षों तक आगे बढ़ा।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर लगातार सात दिन और आठ पहर तक ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से सुरक्षित रखा, तब उनकी इस कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ब्रजवासियों ने सात दिनों तक प्रतिदिन आठ पहर के हिसाब से कुल 56 (7×8=56) प्रकार के व्यंजन तैयार कर भगवान को अर्पित किए। तभी से यह परंपरा स्थापित हो गई, और आज भी भक्तगण श्रद्धा और प्रेम के साथ भगवान कृष्ण को छप्पन भोग अर्पित करते हैं, जिसे दिव्य प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

छप्पन भोग छप्पन सखियों का रूप है, कहा जाता है गौलोक में प्रभु कृष्ण राधा रानी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजमान होते है जिसकी तीन परतें होती है और तीनों परतों में क्रमश: आठ, सोलह और बत्तीस पंखुड़ीयाँ होती है, कहते है हर पंखुड़ी पर एक विशेष सखी का स्थान होता है और मध्य में श्रीराधाकृष्ण की जोड़ी होती है।