हिन्दू धर्मग्रंथों से संबंधित रोचक तथ्य(20)

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जिस रात रावण माता सीता को हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया, उसी रात ब्रह्माजी के निर्देश पर देवराज इंद्र वहाँ पहुँचे। उन्होंने सबसे पहले वाटिका में मौजूद सभी राक्षसों को सम्मोहित करके सुला दिया ताकि कोई उन्हें देख न सके। उसके बाद, इंद्र ने माता सीता के लिए खीर अर्पित की। इस खीर का सेवन करने से सीताजी की भूख और प्यास शांत हो गई, और उन्हें कुछ हद तक राहत भी मिली।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जिस रात रावण माता सीता को हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया, उसी रात ब्रह्माजी के निर्देश पर देवराज इंद्र वहाँ पहुँचे। उन्होंने सबसे पहले वाटिका में मौजूद सभी राक्षसों को सम्मोहित करके सुला दिया ताकि कोई उन्हें देख न सके। उसके बाद, इंद्र ने माता सीता के लिए खीर अर्पित की। इस खीर का सेवन करने से सीताजी की भूख और प्यास शांत हो गई, और उन्हें कुछ हद तक राहत भी मिली।

श्रीरामचरितमानस के अनुसार, कुंभकर्ण मन ही मन प्रभु श्रीराम की कृपा पाने की अभिलाषा रखता था। वह उनके प्रति गहरी भक्ति से भरा हुआ था, लेकिन अपने कर्तव्य और परिस्थितियों के चलते उसने युद्ध में भाग लिया। जैसे ही उसे श्रीराम के बाण लगे, कुंभकर्ण ने उसी क्षण शरीर त्याग दिया और इस तरह उसे मोक्ष प्राप्त हो गया। यह प्रसंग इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर में सच्ची भक्ति अंततः अपने भक्त को सफल मार्ग दिखाती ही है, चाहे वह कितना भी विपरीत समय क्यों न हो।

श्रीरामचरितमानस के अनुसार, कुंभकर्ण मन ही मन प्रभु श्रीराम की कृपा पाने की अभिलाषा रखता था। वह उनके प्रति गहरी भक्ति से भरा हुआ था, लेकिन अपने कर्तव्य और परिस्थितियों के चलते उसने युद्ध में भाग लिया। जैसे ही उसे श्रीराम के बाण लगे, कुंभकर्ण ने उसी क्षण शरीर त्याग दिया और इस तरह उसे मोक्ष प्राप्त हो गया। यह प्रसंग इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर में सच्ची भक्ति अंततः अपने भक्त को सफल मार्ग दिखाती ही है, चाहे वह कितना भी विपरीत समय क्यों न हो।

नालंदा यूनिवर्सिटी यहां की लाइब्रेरी में हजारों किताबों के साथ 90 लाख पांडुलिपियां रखी हुई है। यहां पर बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर आग लगा दी थी जिसे बुझाने में 6 महीने से ज्यादा का वक़्त लगा था।

नालंदा यूनिवर्सिटी यहां की लाइब्रेरी में हजारों किताबों के साथ 90 लाख पांडुलिपियां रखी हुई है। यहां पर बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर आग लगा दी थी जिसे बुझाने में 6 महीने से ज्यादा का वक़्त लगा था।

तंत्र शास्त्र के माध्यम से ही प्राचीनकाल में घातक किस्म के हथियार बनाए जाते थे। जैसे पाशुपतास्त्र, नागपाश, ब्रह्मास्त्र आदि। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विधा का जन्म हुआ है।

तंत्र शास्त्र के माध्यम से ही प्राचीनकाल में घातक किस्म के हथियार बनाए जाते थे। जैसे पाशुपतास्त्र, नागपाश, ब्रह्मास्त्र आदि। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विधा का जन्म हुआ है।

पूर्व काल में, महाभारत को ‘जय-संहिता’ नाम से जाना जाता था, और तब इसके कुल साठ लाख श्लोक हुआ करते थे। महर्षि वेदव्यास जी ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ को चार संस्करणों में विभाजित किया था। पहले संस्करण में तीस लाख श्लोक थे, जिन्हें देवर्षि नारद जी ने देवलोक में देवताओं को सुनाया। दूसरे संस्करण में पंद्रह लाख श्लोक थे, जिन्हें ऋषि देवल व असित ने पितृलोक के पितृगणों को सुनाया। तीसरे संस्करण में चौदह लाख श्लोक थे, जो शुकदेव जी ने गन्धर्वों, यक्षों आदि को सुनाए। अंत में, चौथे संस्करण के एक लाख श्लोकों का प्रचार मनुष्यलोक में हुआ, जिसे वैशम्पायन जी ने राजा जन्मेजय और अन्य ऋषि-मुनियों के समक्ष प्रस्तुत किया।

पूर्व काल में, महाभारत को ‘जय-संहिता’ नाम से जाना जाता था, और तब इसके कुल साठ लाख श्लोक हुआ करते थे। महर्षि वेदव्यास जी ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ को चार संस्करणों में विभाजित किया था। पहले संस्करण में तीस लाख श्लोक थे, जिन्हें देवर्षि नारद जी ने देवलोक में देवताओं को सुनाया। दूसरे संस्करण में पंद्रह लाख श्लोक थे, जिन्हें ऋषि देवल व असित ने पितृलोक के पितृगणों को सुनाया। तीसरे संस्करण में चौदह लाख श्लोक थे, जो शुकदेव जी ने गन्धर्वों, यक्षों आदि को सुनाए। अंत में, चौथे संस्करण के एक लाख श्लोकों का प्रचार मनुष्यलोक में हुआ, जिसे वैशम्पायन जी ने राजा जन्मेजय और अन्य ऋषि-मुनियों के समक्ष प्रस्तुत किया।

आज जिस महाभारत को हम पढ़ते या सुनते हैं, उसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं। इनमें से लगभग चौरासी हज़ार श्लोक नीलकंठी टीका से लिए गए हैं, जबकि हरिवंश के सोलह हज़ार श्लोक इसमें शामिल किए गए हैं। दरअसल, महाभारत का मूल नाम ‘जय-संहिता’ था, जिसे महर्षि वेदव्यास जी ने पूरे साठ लाख श्लोकों में रचा था। उस दौर में इस महान ग्रंथ के चार अलग-अलग संस्करण भी प्रचलित थे—पहले संस्करण में तीस लाख श्लोक थे, दूसरे में पंद्रह लाख, तीसरे में चौदह लाख, और चौथे में एक लाख श्लोक पाए जाते थे।

आज जिस महाभारत को हम पढ़ते या सुनते हैं, उसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं। इनमें से लगभग चौरासी हज़ार श्लोक नीलकंठी टीका से लिए गए हैं, जबकि हरिवंश के सोलह हज़ार श्लोक इसमें शामिल किए गए हैं। दरअसल, महाभारत का मूल नाम ‘जय-संहिता’ था, जिसे महर्षि वेदव्यास जी ने पूरे साठ लाख श्लोकों में रचा था। उस दौर में इस महान ग्रंथ के चार अलग-अलग संस्करण भी प्रचलित थे—पहले संस्करण में तीस लाख श्लोक थे, दूसरे में पंद्रह लाख, तीसरे में चौदह लाख, और चौथे में एक लाख श्लोक पाए जाते थे।

पुराणों में मृत संजीवनी विद्या का उल्लेख मिलता है, यह एक ऐसी अद्भुत विद्या है जिससे मृत जीव भी जीवित हो सकता है, इसी विद्या के द्वारा देवासुर संग्राम में दैत्य गुरु शुक्राचार्य नें मरे हुये दैत्यों को फिर से जीवित कर दिया था। मृत संजीवनी विद्या और मृत्युंजय साधना के अधिष्ठात्रा भगवान शिव हैं, रावण नें भी इसी साधना से मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। वर्तमान युग में इन दुर्लभ विद्याओं का ज्ञान शायद ही किसी सामान्य मनुष्य को हो, लेकिन प्राचीन काल में यौगिक, मान्त्रिक और भौतिक क्रियाओं द्वारा मृत संजीवनी विद्या का प्रयोग होता था।

पुराणों में मृत संजीवनी विद्या का उल्लेख मिलता है, यह एक ऐसी अद्भुत विद्या है जिससे मृत जीव भी जीवित हो सकता है, इसी विद्या के द्वारा देवासुर संग्राम में दैत्य गुरु शुक्राचार्य नें मरे हुये दैत्यों को फिर से जीवित कर दिया था। मृत संजीवनी विद्या और मृत्युंजय साधना के अधिष्ठात्रा भगवान शिव हैं, रावण नें भी इसी साधना से मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। वर्तमान युग में इन दुर्लभ विद्याओं का ज्ञान शायद ही किसी सामान्य मनुष्य को हो, लेकिन प्राचीन काल में यौगिक, मान्त्रिक और भौतिक क्रियाओं द्वारा मृत संजीवनी विद्या का प्रयोग होता था।

दुःख और निराशा से जूझ रहे कई लोग आत्महत्या करने का विचार करते हैं, लेकिन इसे जीवन में की गयी सबसे बड़ी गलती माना गया है। यदि लोग यह जान लें की आत्महत्या करने के बाद होता क्या है तो वह कभी ऐसे विचारों को भी अपने पास नहीं आने देंगे। वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या का उल्लेख करते हुये कहा गया है, असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृता । तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ।। अर्थात जीवित रहते हुये व्यक्ति को उसकी समस्याओं से कभी ना कभी छुटकारा मिल ही जायेगा, लेकिन आत्महत्या के बाद जीव ऐसे संसार में प्रवेश करता है जहां सूर्यदेव नही हैं और इस संसार में सिर्फ नकारात्मकता और अंतहीन कष्ट हैं, जिनसे मुक्ति नहीं मिलती।

दुःख और निराशा से जूझ रहे कई लोग आत्महत्या करने का विचार करते हैं, लेकिन इसे जीवन में की गयी सबसे बड़ी गलती माना गया है। यदि लोग यह जान लें की आत्महत्या करने के बाद होता क्या है तो वह कभी ऐसे विचारों को भी अपने पास नहीं आने देंगे। वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या का उल्लेख करते हुये कहा गया है, असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृता । तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ।। अर्थात जीवित रहते हुये व्यक्ति को उसकी समस्याओं से कभी ना कभी छुटकारा मिल ही जायेगा, लेकिन आत्महत्या के बाद जीव ऐसे संसार में प्रवेश करता है जहां सूर्यदेव नही हैं और इस संसार में सिर्फ नकारात्मकता और अंतहीन कष्ट हैं, जिनसे मुक्ति नहीं मिलती।

हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है, हिन्दू धर्म से सम्बंधित साक्ष्य इसे 10,000 ईशा पूर्व पुराना बताते है और साहित्य के अनुसार यह  7000 ईशा पूर्व पुराना है।

हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है, हिन्दू धर्म से सम्बंधित साक्ष्य इसे 10,000 ईशा पूर्व पुराना बताते है और साहित्य के अनुसार यह 7000 ईशा पूर्व पुराना है।

ऋग्वेद को दुनिया की सबसे पुरानी किताब माना गया है, यह 7000 ईसा पूर्व पुरानी है।

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