देवी माँ से संबंधित रोचक तथ्य(17)

योगिनियाँ देवी पार्वती की सर्वदा निःस्वार्थ भाव से सेवा जतन करती रहती हैं, देवी ने अपने इन्हीं सहचरी योगिनियों के क्षुधा निवारण करने हेतु, अपने मस्तक को काट कर रक्त पान करवाया था और छिन्नमस्ता नाम से प्रसिद्ध हुई, देवी पार्वती इन्हें अपनी संतानों की तरह स्नेह करती हैं।

योगिनियाँ देवी पार्वती की सर्वदा निःस्वार्थ भाव से सेवा जतन करती रहती हैं, देवी ने अपने इन्हीं सहचरी योगिनियों के क्षुधा निवारण करने हेतु, अपने मस्तक को काट कर रक्त पान करवाया था और छिन्नमस्ता नाम से प्रसिद्ध हुई, देवी पार्वती इन्हें अपनी संतानों की तरह स्नेह करती हैं।

माँ सरस्वती का ही एक रूप हैं देवी गायत्री, ऋग्वेद के मंडल 3.62.10 के अनुसार भगवान सूर्य की आराधना के लिए ही माँ सरस्वती ने स्वयं को गायत्री मन्त्र के रूप में परिवर्तित किया था जो भगवान सूर्य को समर्पित मन्त्र है।

माँ सरस्वती का ही एक रूप हैं देवी गायत्री, ऋग्वेद के मंडल 3.62.10 के अनुसार भगवान सूर्य की आराधना के लिए ही माँ सरस्वती ने स्वयं को गायत्री मन्त्र के रूप में परिवर्तित किया था जो भगवान सूर्य को समर्पित मन्त्र है।

हिमाचल प्रदेश के डलहौज़ी में डैनकुंड के पास पोहलानी माता का दिव्य मंदिर है, माता काली के ही रूप माता पोहलानी को पहलवानों की देवी कहा जाता है। माँ काली ने यहाँ राक्षसों का संहार किया था तभी से इस मंदिर का नाम पोहलवानी माता पड़ा है। लोक कथाओं के अनुसार वर्षों पहले यहाँ के एक बड़े पत्थर से माँ काली प्रकट हुई थी, तब पत्थर के फटने की आवाज दूर-दूर तक लोगों को सुनाई दी थी। कन्या रूपी माता के हाथ में त्रिशूल था और यहीं पर माता ने राक्षसों से एक पहलवान की तरह लड़ कर उनका वध किया था, तभी से यहाँ पर माता को पहलवानी माता के नाम से पुकारा जाने लगा। एक किसान को माता ने सपने में आकर मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया और उनके आदेशानुसार ही यहाँ पर माता के मंदिर की स्थापना की गई।

हिमाचल प्रदेश के डलहौज़ी में डैनकुंड के पास पोहलानी माता का दिव्य मंदिर है, माता काली के ही रूप माता पोहलानी को पहलवानों की देवी कहा जाता है। माँ काली ने यहाँ राक्षसों का संहार किया था तभी से इस मंदिर का नाम पोहलवानी माता पड़ा है। लोक कथाओं के अनुसार वर्षों पहले यहाँ के एक बड़े पत्थर से माँ काली प्रकट हुई थी, तब पत्थर के फटने की आवाज दूर-दूर तक लोगों को सुनाई दी थी। कन्या रूपी माता के हाथ में त्रिशूल था और यहीं पर माता ने राक्षसों से एक पहलवान की तरह लड़ कर उनका वध किया था, तभी से यहाँ पर माता को पहलवानी माता के नाम से पुकारा जाने लगा। एक किसान को माता ने सपने में आकर मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया और उनके आदेशानुसार ही यहाँ पर माता के मंदिर की स्थापना की गई।

बिहार के कैमूर जिले के कौरा क्षेत्र में स्थित मुंडेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास बेहद पुराना है। मंदिर के परिसर में मौजूद शिलालेख बताते हैं कि यह मंदिर 635 ईस्वी में भी अस्तित्व में था। यहाँ बलि चढ़ाने की एक अनोखी परंपरा है, जो अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। आम तौर पर बलि में किसी पशु की बलि दी जाती है, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं होता। जब किसी बकरे की बलि दी जाती है, तो पुजारी माता की मूर्ति के सामने चावल के कुछ दाने स्पर्श करवाकर बकरे पर फेंकते हैं। जैसे ही चावल बकरे पर गिरते हैं, वह बेहोश सा हो जाता है। कुछ समय बाद पुजारी दोबारा चावल बकरे पर डालते हैं, और वह फिर से होश में आ जाता है। इस अनोखी बलि प्रक्रिया के बाद बकरे को पूरी तरह स्वस्थ छोड़ दिया जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

बिहार के कैमूर जिले के कौरा क्षेत्र में स्थित मुंडेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास बेहद पुराना है। मंदिर के परिसर में मौजूद शिलालेख बताते हैं कि यह मंदिर 635 ईस्वी में भी अस्तित्व में था। यहाँ बलि चढ़ाने की एक अनोखी परंपरा है, जो अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। आम तौर पर बलि में किसी पशु की बलि दी जाती है, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं होता। जब किसी बकरे की बलि दी जाती है, तो पुजारी माता की मूर्ति के सामने चावल के कुछ दाने स्पर्श करवाकर बकरे पर फेंकते हैं। जैसे ही चावल बकरे पर गिरते हैं, वह बेहोश सा हो जाता है। कुछ समय बाद पुजारी दोबारा चावल बकरे पर डालते हैं, और वह फिर से होश में आ जाता है। इस अनोखी बलि प्रक्रिया के बाद बकरे को पूरी तरह स्वस्थ छोड़ दिया जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

देवी कामाख्या की पूजा भगवान शिव की नववधू पत्नी देवी सती के रूप में की जाती है, माँ कामाख्या मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। कामाख्या माता को माँ काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी माना गया है।

देवी कामाख्या की पूजा भगवान शिव की नववधू पत्नी देवी सती के रूप में की जाती है, माँ कामाख्या मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। कामाख्या माता को माँ काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी माना गया है।

योगिनियाँ! साक्षात आदि शक्ति की ही अवतार हैं तथा सर्वदा ही देवी पार्वती के संग रहते हुए इनकी सेवा करती हैं। घोर नामक दैत्य से साथ युद्ध करते हुए आदि शक्ति ने ही समस्त योगिनियों के रूप में अवतार लिया है। महाविद्याएं, सिद्ध विद्याएं भी योगिनियों की श्रेणी में ही आती हैं तथा सभी आद्या शक्ति के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं।

योगिनियाँ! साक्षात आदि शक्ति की ही अवतार हैं तथा सर्वदा ही देवी पार्वती के संग रहते हुए इनकी सेवा करती हैं। घोर नामक दैत्य से साथ युद्ध करते हुए आदि शक्ति ने ही समस्त योगिनियों के रूप में अवतार लिया है। महाविद्याएं, सिद्ध विद्याएं भी योगिनियों की श्रेणी में ही आती हैं तथा सभी आद्या शक्ति के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं।

माँ सरस्वती का ही एक रूप हैं देवी गायत्री, ऋग्वेद के मंडल 3.62.10 के अनुसार भगवान सूर्य की आराधना के लिए ही माँ सरस्वती ने स्वयं को गायत्री मन्त्र के रूप में परिवर्तित किया था जो भगवान सूर्य को समर्पित मन्त्र है।

माँ सरस्वती का ही एक रूप हैं देवी गायत्री, ऋग्वेद के मंडल 3.62.10 के अनुसार भगवान सूर्य की आराधना के लिए ही माँ सरस्वती ने स्वयं को गायत्री मन्त्र के रूप में परिवर्तित किया था जो भगवान सूर्य को समर्पित मन्त्र है।

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